प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना (PM POSHAN)
1.1 प्रारंभिक स्थिति
भारत में बच्चों, गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली महिलाओं की पोषण स्थिति वर्षों से एक गंभीर समस्या रही है। मिड‑डे मील योजना (Mid-Day Meal Scheme) जैसी योजनाएँ चल रही थीं, लेकिन उन्हें अधिक समग्र, पोषण-केन्द्रित और व्यापक हस्तक्षेप की आवश्यकता थी।
इसके अलावा, कुपोषण, एनिमिया, स्टंटिंग (बौनेपन), वेस्टिंग (वज़न/उम्र अनुपात से कम होना) जैसी चुनौतियाँ बनी हुई थीं, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य और विकासशीलता पर भी नकारात्मक असर पड़ता था।
1.2 योजना का नाम एवं स्वरूप
शिक्षा मंत्रालय (Ministry of Education), भारत सरकार द्वारा यह शुभारंभ की गई एक केंद्र-प्रायोजित योजना है। इसे नाम दिया गया है “प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना” (PM POSHAN)।
हालाँकि कुछ स्रोतों में “पोषण शक्ति निर्माण” को “पोशन शक्ति निर्माण” आदि लिखा गया है, सही व मानक नाम “पोशन” से नहीं बल्कि “पोषण” से है।
1.3 उद्देश्य
इस योजना का मुख्य उद्देश्य बच्चों को स्कूल में एक गर्म पका हुआ भोजन उपलब्ध कराना है ताकि उनकी पोषण स्थिति सुधरे, स्कूल के प्रति जुड़ाव बढ़े, अनुपस्थिति कम हो, और समग्र विकास को बढ़ावा मिले।
साथ ही, भविष्य में यह लक्ष्य भी है कि बच्चों की शारीरिक तथा मानसिक क्षमता बढ़े, कुपोषण कम हो, तथा शिक्षा-स्वास्थ्य के बीच बेहतर संबंध बने।
1.4 कब और कैसे शुरू हुई?
– पहले मिड-डे मील योजना 15 अगस्त 1995 को शुरू हुई थी।
– वर्ष 2021 के बाद इसे नाम बदलकर PM POSHAN किया गया है।
– यह योजना 2021-22 से 2025-26 तक की अवधारणा के तहत व्यापक रूप से चलायी जा रही है।
2.1 कवरेज (लाभार्थी एवं स्कूले-स्तर)
– इस योजना के अंतर्गत, सरकारी तथा सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में अध्ययनरत कक्षा I से VIII तक के बच्चों को गर्म पका हुआ भोजन उपलब्ध कराया जाता है।
– कुछ राज्यों में बालवाटिका (Pre‐Primary) को भी शामिल किया गया है।
– इस तरह लाखों स्कूलों एवं करोड़ों बच्चों को लाभ पहुँचाया जा रहा है।
2.2 आहार का स्वरूप एवं पोषण मानदंड
– स्कूले-भोजन में यह सुनिश्चित करना है कि बच्चों को पर्याप्त कैलोरी और पोषक तत्व मिलें।
– उदाहरण के लिए, 2024 में एक समाचार के अनुसार सामग्री लागत की दरें बढ़ाई गई हैं: प्राथमिक एवं बालवाटिका-कक्षाओं में सामग्री लागत ₹ 6.19 प्रति स्नैक/भोजन तथा उच्च प्राथमिक में ₹ 9.29 की गई।
2.3 वित्त-झाँकी एवं संसाधन-वितरण
– यह एक केंद्र-प्रायोजित योजना है; केंद्र और राज्य मिलकर इसे कार्यान्वित करते हैं।
– संसाधन (खाद्यान्न, धनराशि, कुकिंग-लागत आदि) राज्यों, जिलों, स्कूलों तक वितरित होते हैं।
– जैसे कि सामग्री लागत, कुकिंग लागत, परिवहन भत्ता आदि अलग-अलग घटक हैं।
2.4 तकनीकी एवं मैनेजमेंट पहल
– इस योजना में मैनेजमेंट सूचना प्रणाली (MIS) और रिपोर्टिंग प्लेटफार्म मौजूद हैं। उदाहरणस्वरूप, हिमाचल प्रदेश में इस योजना का “Automated Reporting & Management System” लिया गया है।
– राज्यों में पोषण उन्नति के लिए Behavioural Change Communication (BCC), स्कूल स्तर पर पोषण उद्यान आदि पहलें शामिल हैं।
2.5 अन्य सह-हस्तक्षेप
– पोषण सम्बंधित जागरूकता कार्य, पोषण आहार-विविधता को बढ़ावा देना, एनिमिया अभियान आदि इस योजना के सह-हस्तक्षेप हैं।
3. योजना के उद्देश्य
– बच्चों की पोषण स्थिति सुधारना (जैसे कि स्टंटिंग, वेस्टिंग, एनिमिया)
– स्कूलों में उपस्थित ता एवं जुड़ाव बढ़ाना
– समग्र स्वास्थ्य और विकास को सुनिश्चित करना
– शिक्षा के साथ स्वस्थ जीवनशैली को प्रोत्साहित करना
य़ह योजना इन सभी उद्देश्यों को समग्र रूप से लागू करती है।
3.2 लक्ष्य
– बच्चों को प्रतिदिन एक संतुलित एवं पौष्टिक भोजन देना
– स्कूल-भोजन की पहुँच को सुदृढ़ करना
– पोषण संबंधी व्यवहार में बदलाव लाना
– डेटा-आधारित निगरानी तथा सुधार की प्रक्रिया सुनिश्चित करना
4.1 कौन क्रियान्वित करता है
– केंद्रीय स्तर पर Department of School Education & Literacy (DSE&L), शिक्षा मंत्रालय
– राज्य तथा जिला-स्तर पर संबंधित शिक्षा विभाग, महानिदेशालय आदि
– स्कूलों, कुकिंग एजेंसियों, स्वयं-सेवी/समूहों की भूमिका शामिल है।
4.2 राज्य-विभाजन एवं ज़िला-रूपरेखा
– प्रत्येक राज्य/केंद्रशासित प्रदेश में योजना का संवाहक है।
– जिला-स्तर पर परियोजना प्राधिकारी, ब्लॉक-स्तर पर प्राधिकारी/शिक्षा अधिकारी जिम्मेदार हैं।
4.3 पोषण मेनू एवं वितरण
– प्रत्येक कार्यदिवस (स्कूल चलने वाले दिन) बच्चों को एक गर्म पका हुआ भोजन प्रदान किया जाता है।
– मेनू में स्थानीय खाद्य पदार्थों, प्रोटीन-दाल-सब्जी-करी आदि शामिल हो सकते हैं, विभिन्न राज्यों में भिन्नता हो सकती है।
4.4 निगरानी एवं रिपोर्टिंग
– स्कूल-स्तर से मासिक रिपोर्टिंग, पोषण-मान-समीक्षा, सामाजिक लेखा-परख (social audit) की जाती है।
– MIS प्लेटफार्म द्वारा आँकड़े जुटाये जाते हैं जैसे कि भोजन वितरण की संख्या, अनुपस्थिति क्यों हुई, आदि।
4.5 संसाधन वितरण-लॉजिस्टिक्स
– केंद्र और राज्य मिलकर खाद्यान्न (चावल, गेहूँ, दाल आदि) आवंटन करते हैं। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश के पोर्टल पर वितरण संबंधी विवरण है।
– भोजन पकाने की लागत, परिवहन भत्ता, कुक-मानदेय आदि तय दरों पर दिए जाते हैं।
4.6 तकनीकी उपाय
– ऐप्स, पोर्टल्स, मोबाइल-सिस्टम्स के ज़रिए स्कूल-रसोई, कुकिंग एजेंसियों की जानकारी अपडेट की जाती है। उदाहरण के लिए MP का ऐप।
पात्रता 5.1 लाभार्थी
– सरकारी एवं सरकारी-सहायता प्राप्त स्कूलों में कक्षा I से VIII तक पढने वाले बच्चे।
– कुछ राज्य-विशेष में बालवाटिका/प्री-प्राइमरी के बच्चे।
5.2 पात्रता
| क्र. | पात्रता का बिंदु |
|---|---|
| 1 | स्कूल सरकारी या सरकारी-सहायता प्राप्त हो। |
| 2 | कक्षा I-VIII के बच्चों को विद्यालय में नामांकन हो। |
| 3 | बच्चों को नामांकन के बाद नियमित विद्यालय जाना हो। |
| 4 | राज्य/जिला द्वारा तय अन्य स्थानीय मानदंड (उदाहरण के लिए अनुपस्थिति, पोषण-चेक-अप) पूर्ण हों। |
5.3 कोई अलग “आवेदन” की आवश्यकता नहीं (स्कूल-आधारित मॉडल)
कुछ स्रोत यह स्पष्ट करते हैं कि इस योजना के लिए बच्चों को व्यक्तिगत रूप से आवेदन नहीं करना पड़ता; स्कूल स्वचालित रूप से लाभार्थियों को शामिल करता है
इसका मतलब है कि यदि आपका स्कूल इस योजना के अंतर्गत है और आप उसमें नामांकित हैं, तो आपको अलग-से आवेदन की आवश्यकता नहीं है।
5.4 विशेष स्थितियाँ
– यदि विद्यालय में कोई बच्चा नई नामांकन के बाद शामिल होता है, तो उसे भी भोजन का लाभ मिलना चाहिए।
– स्कूलों में अनुपस्थित बच्चों को भी व्यवस्था अनुसार शामिल किया जाना चाहिए।
– राज्य-विशेष में अतिरिक्त मानदंड हो सकते हैं (उदाहरण के लिए विद्यालय की स्थिति, सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि)।
6. वित्तीय पहलू
6.1 सामग्री लागत वृद्धि
– 1 दिसंबर 2024 से सामग्री लागत में वृद्धि की गई है: प्राथमिक/बालवाटिका में ₹ 5.45 से ₹ 6.19 तथा उच्च प्राथमिक में ₹ 8.17 से ₹ 9.29 की गई।
– इसके परिणामस्वरूप वित्तीय वर्ष 2024-25 में केंद्र सरकार को अतिरिक्त लगभग ₹ 425.62 करोड़ का खर्च वहन करना पड़ा।
6.2 केंद्र एवं राज्य का संसाधन भाग
– केंद्र और राज्य मिलकर लागत साझा करते हैं, राज्यों को स्थानीय हिस्सेदारी करनी पड़ सकती है। (
– भोजन सामग्री के अलावा, कुकिंग-लागत, परिवहन भत्ता तथा अन्य लॉजिस्टिक खर्च राज्य/जिला स्तर पर उठाये जाते हैं। उदाहरण के लिए मिड-डे मील के तहत दालों की मात्रा बढ़ाई गयी थी।
6.4 बजट एवं अनुमान
– जैसे “दृष्टि” के विश्लेषण में बताया गया है कि अनुमानित लागत लगभग ₹ 1.30 लाख करोड़ थी, जिसमें केंद्र का हिस्सा लगभग ₹ 54,061 करोड़ था।
7. योजना के लाभ और अपेक्षित प्रभाव
7.1 लाभ
– बच्चों को रोज़ एक पौष्टिक भोजन मिलने से उनकी पोषण स्थिति बेहतर होती है।
– स्कूल में उपस्थित ता और नामांकन दोनों में वृद्धि होती है।
– शिक्षा तथा स्वास्थ्य दोनों क्षेत्रों में सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है।
– सामाजिक समावेश बढ़ता है क्योंकि सभी बच्चों को समान भोजन मिलता है।
7.2 अपेक्षित प्रभाव
– स्टंटिंग (बौनेपन) और वेस्टिंग (कमज़ोरी) में कमी।
– एनिमिया तथा माइक्रोन्यूट्रिएंट-कमी में सुधार।
– स्कूल छोड़ने की दर कम होती है, विशेष रूप से लड़कियों में।
– स्थानीय अर्थव्यवस्था को सहायता मिलना (खाद्य उपलब्धि, स्थानीय विक्रेताओं/स्वयं सहायता समूहों को हिस्सा)
7.3 अभी तक की चुनौतियाँ और विकास
– विश्लेषण बताते हैं कि कुपोषण संकेतकों में अभी भी सुधार की ज़रूरत है।
– ग्रामीण, दूरदराज़ क्षेत्रों में पहुंच, लॉजिस्टिक्स एवं गुणवत्ता समस्या बनी हुई है।
– व्यवहारिक बदलाव (जैसे समय पर भोजन, पोषणप्रद मेनू, स्वच्छता) सुनिश्चित करना आसान नहीं।
8.1 चुनौतियाँ
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स्कूल-रसोई/भोजन वितरण में देर-सेवा या अनुपस्थितता।
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भोजन की गुणवत्ता एवं पोषण मानदंड का सही पालन नहीं होना।
-
लॉजिस्टिक्स: खाद्यान्न वितरित करने में देरी, कुकिंग गैस/रसोई इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी।
-
सामाजिक और भौगोलिक असमानताएँ: पिछड़े जिलों में संसाधनों की कमी।
-
निगरानी एवं डेटा-प्रबंधन में कमी: रिपोर्टिंग में त्रुटियाँ, वास्तविक-समय डेटा नहीं मिलना।
-
आर्थिक एवं बजट-दबाव: कीमतों में बढ़ोतरी, राज्यों की हिस्सेदारी का दबाव।
उदाहरण के लिए सामग्री लागत में वृद्धि हुई है।
8.2 समाधान एवं सुझाव
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स्कूल-रसोई इंफ्रास्ट्रक्चर (रसोई घर, गैस, स्वच्छता, उपकरण) को मजबूत बनाना।
-
स्थानीय खाद्य उत्पादों का उपयोग बढ़ाना, जिससे लागत कम होगी और स्थानीय समूहों को फायदा होगा।
-
पोषण-जागरूकता अभियान (Behaviour Change Communication) द्वारा बच्चों, अभिभावकों व समुदाय को शामिल करना।
-
डिजिटल-निगरानी सिस्टम (MIS, मोबाइल ऐप, पोर्टल) को बेहतर बनाना।
-
राज्य-विशेष योजनाएँ बनाना, ताकि व्यापक विविधता को देखते हुए हल निकल सके।
-
बजट-सुधार: लागत-बढ़ोतरी के लिए नियमित समीक्षा व समायोजन। जैसे सामग्री लागत बढ़ने का उदाहरण।
9. ऑनलाइन आवेदन
9.1 क्या व्यक्तिगत आवेदन की आवश्यकता है?
– इस योजना के अंतर्गत, अलग व्यक्तिगत आवेदन फार्म आमतौर पर नहीं भरे जाते हैं। कई स्रोत बताते हैं कि बच्चों को अपने-आप स्कूल में शामिल किया जाता है और स्कूल-प्रशासन यह सुनिश्चित करता है।
– उदाहरण के लिए “yojananame.com” पर लिखा है: “यदि आप सोच रहे हैं कि … ऑनलाइन या ऑफलाइन आवेदन किया जाएगा तो … किसी भी प्रकार का अलग से आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है।”
9.2 स्कूल/विद्यालय पंजीकरण एवं जानकारी अपडेटिंग
– हालांकि व्यक्तिगत आवेदन नहीं है, लेकिन विद्यालयों, रसोई एजेंसियों और स्कूल-प्रशासन को पोर्टल या ऐप पर पंजीकरण करना होता है और जानकारी अपडेट करनी होती है।
– उदाहरण: मध्य प्रदेश में पोर्टल “pmposhan.mp.gov.in” है जहाँ विद्यालय/प्रशासन अपनी जानकारी लॉगिन करके अपडेट कर सकते हैं।
– हिमाचल प्रदेश की पोर्टल में भी स्थिति यह है कि विद्यालयों को “Automated Reporting & Management System” में जाना है।
9.3 ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया — विद्यालय/प्रशासन के रूप में
नीचे एक सामान्य रूपरेखा दी जा रही है कि यदि आपका स्कूल इस योजना में शामिल करना चाहता है या जानकारी अपडेट करना चाहता है, तो क्या-क्या करना होगा:
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स्कूल का पता, नामांकन संख्या, ब्लॉक/जिला आदि जानकारी तैयार रखें।
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राज्य-शिक्षा विभाग द्वारा जारी पोर्टल या ऐप पर लॉगिन करें (उदाहरण : pmposhan.mp.gov.in)।
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विद्यालय की मूलभूत जानकारी (स्कूल नाम, कोड, ज़िला, ब्लॉक, बच्चे संख्या) भरें।
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रसोई एजेंसी/कुकिंग एजेंसी (यदि लागू हो) का पंजीकरण करें एवं कुक-सहायकों आदि की जानकारी दें।
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मासिक रिपोर्ट, बच्चों को भोजन दिए जाने का विवरण, अनुपस्थिति-वजह, खाद्यान्न वितरण आदि अपडेट करें।
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यदि राज्य-विशेष दस्तावेज-अपलोड की आवश्यकता है, तो वह भी करें (जैसे सामाजिक लेखा-परख रिपोर्ट, स्कूल-स्वच्छता प्रमाणपत्र आदि)।
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सुनिश्चित करें कि संबन्धित विभाग के द्वारा भू-अंकित जानकारी (स्कूल-स्थिति, ब्लॉक-मानचित्र) अपडेट हो।
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बच्चों के लिए आवेदन की बात हो तो — यदि स्कूल में पहले नामांकन हुआ है, तो विजड़-विवरण स्कूल द्वारा पोर्टल में दर्ज किया जाना चाहिए।
9.4 अभिभावक/छात्र के रूप में क्या करना होगा?
– यदि आप अभिभावक हैं और आपके बच्चे को यह लाभ मिलना चाहिए, तो सुनिश्चित करें कि आपका बच्चा सरकारी या सरकारी-सहायता प्राप्त स्कूल में नामांकित हो।
– स्कूल प्रशासन से संपर्क करें कि वह योजना के अंतर्गत बच्चों को भोजन उपलब्ध करा रहा है एवं स्कूल पोर्टल पर पंजीकृत है।
– यदि स्थानीय स्तर पर शिकायत या सूचना देना चाहते हैं, तो विद्यालय, ब्लॉक-शिक्षा अधिकारी या राज्य-पोर्टल हेल्पलाइन से संपर्क करें।
9.5 आवेदन नहीं होना — योजना स्वचालित रूप से लाभ देती है
– जैसा ऊपर वर्णित है, व्यक्तिगत आवेदन की आवश्यकता नहीं है, इसलिए यदि ऐसा कोई पंजीकरण फॉर्म नहीं मिला है तो यह सामान्य स्थिति है।
– यदि विद्यालय नहीं है या पोर्टल में नाम नहीं है, तो स्कूल-प्रशासन से यह सुनिश्चित करें कि विद्यालय को योजना में पंजीकृत कराया गया हो।
10. राज्य-विशेष कार्यान्वयन एवं उदाहरण
10.1 मध्य प्रदेश (MP)
– मध्य प्रदेश में इस योजना का पोर्टल “pmposhan.mp.gov.in” है।
– राज्य-के ऐप “MP PM Poshan Shakti Nirman” भी मौजूद है जिसे एनआईसी द्वारा विकसित किया गया है।
– विद्यालय, कुकिंग एजेंसियाँ, कुक-सहायक आदि ऐप/पोर्टल में लॉगिन करके जानकारी दर्ज करते हैं।
10.2 छत्तीसगढ़ (CG)
– छत्तीसगढ़ के मिड-डे मील पोर्टल में भी इस योजना के अंतर्गत सूचना उपलब्ध है।
10.3 अन्य राज्यों में निगरानी एवं रिपोर्टिंग
– हिमाचल प्रदेश में “Automated Reporting & Management System” लागू है।
– अन्य राज्य-विशेष पोर्टल्स एवं ऐप्स इसी तरह उपलब्ध हैं, प्रत्येक राज्य की अपनी प्रक्रिया हो सकती है।
10.4 राज्य-विशेष चुनौतियाँ एवं उपाय
– दूरदराज़ पहाड़ी या आदिवासी क्षेत्रों में लॉजिस्टिक्स चुनौतीपूर्ण है।
– राज्यों द्वारा योगदान और संसाधन वितरण में अंतर है।
– इसलिए, राज्यों को स्थानीय-अनुकूल योजना बनानी पड़ती है जैसे स्थानीय खाद्य उत्पादों को शामिल करना, स्कूल-रसोई विकास करना आदि।
11. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: क्या मुझे व्यक्तिगत रूप से ऑनलाइन पंजीकरण करना होगा?
उत्तर: नहीं — अधिकांश मामलों में व्यक्तिगत आवेदन की आवश्यकता नहीं है। स्कूल-प्रशासन द्वारा व्यवस्था की जाती है।
प्रश्न 2: अगर मेरा स्कूल सरकारी नहीं है, तो क्या मेरा बच्चा इस योजना का लाभ ले सकता है?
उत्तर: इस योजना का फोकस सरकारी एवं सरकारी-सहायता प्राप्त स्कूलों पर है। निजी स्कूल यदि सरकारी-सहायता प्राप्त नहीं हैं, तो योजना के अंतर्गत नहीं होंगे।
प्रश्न 3: यदि मुझे भोजन नहीं मिल रहा है या गुणवत्ता खराब है तो क्या करूँ?
उत्तर: आप विद्यालय प्रशासन से संपर्क करें। यदि समस्या बनी रहे, तो ब्लॉक-शिक्षा अधिकारी, जिला-शिक्षा अधिकारी या राज्य-पोर्टल में शिकायत दर्ज कर सकते हैं। सोशल ऑडिट रिपोर्ट देखें।
प्रश्न 4: क्या यह भोजन सिर्फ चावल-दाल है या अन्य पोषक पदार्थ भी मिलते हैं?
उत्तर: यह सिर्फ चावल-दाल तक सीमित नहीं है — मेनू में सब्जी, दाल, स्थानीय भोजन पदार्थ शामिल हो सकते हैं। तथा राज्यों को पोषण-मानदंडों के अनुसार विविध भोजन देना होगा।
प्रश्न 5: इस योजना का आवेदन कब तक किया जा सकता है?
उत्तर: क्योंकि व्यक्तिगत आवेदन नहीं है, इसलिए आवेदन की कोई तय अन्तिम तिथि नहीं होती; लेकिन स्कूल-नामांकन एवं पोर्टल पंजीकरण समय पर होना चाहिए।
12.1 शिक्षा-स्वास्थ्य की कड़ी
इस योजना शिक्षा एवं स्वास्थ्य के बीच-बीच में पुल का काम करती है — बच्चों को बेहतर पोषण मिलने से उनकी पढ़ाई-क्षमता बढ़ती है, अनुपस्थिति कम होती है, इसलिए यह सामाजिक-विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
12.2 सामाजिक समानता एवं समावेश
सभी बच्चों को भोजन देने की व्यवस्था सामाजिक समावेश को बढ़ावा देती है — विशेष रूप से पिछड़े समुदायों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बच्चों को।
12.3 मानव पूंजी निवेश
स्वस्थ बच्चों का भविष्य बेहतर होता है — इससे मानव पूंजी का निर्माण होता है, देश की उत्पादन-क्षमता और विकास को बल मिलता है।
12.4 अर्थव्यवस्था एवं स्थानीय भागीदारी
खाद्य सामग्री, कुकिंग एजेंसियाँ, स्वयं सहायता समूह (SHG) आदि को योजना के अंतर्गत शामिल किया जाता है — इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी लाभ मिलता है। जैसे कुछ लेखों में “वोकल फॉर लोकल” का जिक्र है।
13. सुधार एवं आगे का रास्ता
13.1 गुणवत्तापूर्ण भोजन सुनिश्चित करना
भोजन का पोषण-मान,卫生 (स्वच्छता), स्कूल रसोई पर्यावरण को और बेहतर बनाया जाना चाहिए।
13.2 तकनीकी निगरानी को सुदृढ़ करना
डेटा-मूलक निर्णय लेने के लिए MIS, मोबाइल-ऐप आदि को व्यापक रूप से लागू करना है।
13.3 स्थानीय विविधता को समाहित करना
राज्यों को स्थानीय खाद्य संसाधनों तथा परिवेश को ध्यान में रखते हुए मेनू बनाना चाहिए।
13.4 वित्तीय स्थिरता एवं वृद्धि
खाद्य एवं लॉजिस्टिक लागत बढ़ रही है; इसलिए बजट-समीक्षा और अद्यतन दरें सुनिश्चित करनी होंगी। जैसे सामग्री लागत वृद्धि का उदाहरण।
13.5 सामाजिक जागरूकता एवं भागीदारी
अभिभावकों, समुदायों और स्वयं-सेवी संस्थाओं को शामिल करके पोषण-प्रथाओं में बदलाव लाना संभव है।
13.6 विशेष क्षेत्र-उपयोजन
गरीब, आदिवासी, पिछड़े जिलों में विशेष मॉड्यूल बनाए जाने चाहिए ताकि पहुँच-विफलता को दूर किया जा सके।

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