H1-B वीजा का ये तोड़ निकालकर बैठी हैं कंपनियां, भारत के लिए बन सकता है नया मौका

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H1-B वीजा का ये तोड़ निकालकर बैठी हैं कंपनियां, भारत के लिए बन सकता है नया मौका

H1-B वीजा का ये तोड़ निकालकर बैठी हैं कंपनियां, भारत के लिए बन सकता है नया मौका

राष्ट्रपति ट्रंप ने भले ही H1-B वीजा की फीस बढ़ाकर अमेरिकी में नौकरी का सपना देखने वालों को चिंता में डाला है, लेकिन कंपनियां पहले ही इसका रास्ता निकालकर बैठी हैं. हालांकि, दूसरा रास्ता थोड़ा कठिन है.

अमेरिका में भारतीय प्रोफेशनल्स को बड़ा झटका लगा है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने नए H-1B वीजा पर 100,000 डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) की भारी फीस लगाने का आदेश जारी कर दिया है. यह आदेश रविवार से लागू हो गया है. अब यह फीस इतनी ज्यादा है कि यह कई लोगों की सैलरी से भी ज्यादा हो गई है. विशेषज्ञों का कहना है कि इस फैसले से कई कंपनियां नए कर्मचारियों को स्पॉन्सर करने से बचेंगी और केवल चुनिंदा और बेहद कुशल कर्मचारियों को ही नौकरी दे पाएंगी.

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H-1B वीजा धारकों में सबसे बड़ी हिस्सेदारी भारतीयों की है. चीन, कनाडा और साउथ कोरिया जैसे देशों से भारत बहुत आगे है. ऐसे में नई फीस का सीधा असर भारतीय आईटी सेक्टर और वहां काम करने वाले प्रोफेशनल्स पर पड़ेगा.

H-1B वीजा का विकल्प

विशेषज्ञों का कहना है कि कंपनियां पहले से ही H-1B की अनिश्चितता से बचने के लिए L-1 वीजा का इस्तेमाल कर रही हैं. 100,000 डॉलर की नई फीस से कंपनियां और ज्यादा L-1 की ओर बढ़ सकती हैं, लेकिन L-1 वीजा तभी मिलता है जब कर्मचारी ने कंपनी के विदेश ऑफिस में कम से कम एक साल काम किया हो. इसलिए नए भर्ती कर्मचारियों के लिए यह विकल्प नहीं है.

L-1 वीजा क्या है?

L-1 वीजा अमेरिका का नॉन-इमिग्रेंट वीजा है. इसके तहत मल्टीनैशनल कंपनियां अपने विदेशी ऑफिस से कुछ कर्मचारियों को अस्थायी तौर पर अमेरिका भेज सकती हैं. इसमें भी दो कैटेगरी आती हैं. जैसे पहला L-1A वीजा है. ये मैनेजर्स और एग्जिक्यूटिव्स के लिए होता है. दूसरा L-1B वीजा है. ये स्पेशल नॉलेज वाले कर्मचारियों के लिए है, जैसे कंपनी की तकनीक या खास प्रक्रियाओं का ज्ञान रखने वाले लोग.

L-1 वीजा के लिए शर्तें

L-1 वीजा के लिए शर्तें थोड़ी जटिल हैं. जैसे कर्मचारी ने पिछले तीन साल में कम से कम एक साल कंपनी के विदेश ऑफिस में लगातार काम किया हो. अमेरिकी ऑफिस और विदेशी ऑफिस के बीच पेरेंट, सब्सिडियरी, अफिलिएट या ब्रांच का रिश्ता होना चाहिए. अमेरिकी ऑफिस का सक्रिय रूप से व्यवसाय करना जरूरी है.

L-1 वीजा की चुनौतियां

रिपोर्ट के मुताबिक, H-1B फीस बढ़ने पर हमेशा L-1 भी ज्यादा जांच के दायरे में आता है. खासकर “स्पेशल नॉलेज” वाले केस बहुत कड़ाई से देखे जाते हैं. अगर कंपनियां H-1B से बचने के लिए L-1 का ज्यादा इस्तेमाल करेंगी तो अमेरिकी अधिकारी और सख्ती कर सकते हैं. इसका मतलब ज्यादा कागजी कार्रवाई होगी. रिजेक्शन की संभावना बढ़ेगी.

भारत के लिए अवसर

H-1B वीजा पर बढ़ी हुई फीस भारत के लिए एक अवसर बन सकता है. इस फैसले का असर तुरंत दिख रहा है. माइक्रोसॉफ्ट और अमेजन जैसी कंपनियां H-1B और H-4 कर्मचारियों को तुरंत अमेरिका लौटने की सलाह दी थी. एक्सपर्ट्स का मानना है कि अमेरिकी नौकरियों की सुरक्षा के बजाय यह फैसला अमेरिका की इनोवेशन क्षमता को चोट पहुंचा सकता है. इससे कंपनियां नौकरियां बाहर शिफ्ट करेंगी और भारत जैसे देशों को इसका अप्रत्याशित फायदा मिलेगा

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